tag:blogger.com,1999:blog-49458479464956527642024-02-08T02:39:52.167-08:00साहित्यधारासाहित्यधाराhttp://www.blogger.com/profile/02274445281796479368noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-4945847946495652764.post-67742719758297212332011-04-18T05:45:00.000-07:002011-04-18T05:52:21.808-07:00लता मेरी लता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"> एक वल्लरी, जो की हमारे दरवाजे के सामने फैली तथा दीवारों से चढ़ कर दरवाजे से लटकती हुई आने जाने वालों से मेल मिलाप करती थी | अपने कोमल पत्तियों से कपोलों को सहला कर एक मीठी उमंग का संचार कर देती थी|परन्तु एक झटका ही उसको नस्तो नाबूत कर दिया (मानो मैंने अपनी सुन्दरता खो दिया हो )|</div></div><div style="text-align: left;"> वही वल्लरी मुझे नागर कोइल के जंगलों में देखने को मिली, मानो मुझसे रूठ कर इतनी दूर जा कर बस गयी हो| पता नहीं मुझे तो नहीं लगता लेकिन उसे देखते ही मेरा ह्रदय प्रफुल्लित हो गया, जी चाहता कि इसके गोद में कूद जाऊं, परन्तु शंका रूपी भय घर कर गया की कहीं घृणा का पात्र न बन जाऊं, परन्तु कोमल पत्तियाँ घनी फैली लता अपनी सगी होने का एहसास करा रही थी |</div><div style="text-align: left;"> पता नहीं क्यों मेरे मन में ख़ुशी तो हुई परन्तु अन्दर से माख भी लग रही थी , जी चाहता कि आज इस वल्लरी को अपने आंसुओं से ही सींचूं | मुझे पहली बार यह एहसास हुआ कि किसी के प्रति कभी भी लगाव हो सकता है | जब मै कभी किताबों में पढता था कि किसी को जानवरों से प्यार है, किसी को पेड़ों से तो किसी को फूलों से ,</div><div style="text-align: left;"> एक बार बच्चों से प्यार करना, जानवर के बच्चों से प्यार करना मान सकते हैं, क्योंकि इनसे प्यार को जताया जा सकता है , परन्तु पेड़ों से फूलों से नदियों से पहाड़ों से , ये बात कभी मेरे समझ में नहीं आई , लेकिन इस पोई ने मुझे एहसास करा दिया कि प्यार किसी से भी हो सकता है |</div><div style="text-align: left;"> जब भी मै घर के अन्दर जाता या बहार निकलता वो मुझे एक बार जरूर चूमती थी उसकी हरियाली कि भीनी - भीनी खुशबू मेरी नाक में कौध जाती और मन प्रफुल्लित हो जाता | मै इसी दैनिक क्रिया का आदी हो चुका था, पता नहीं चला कि इस वल्लरी का मै काहिल हो गया था| शायद वो भी इसी स्पर्स से विकसित हो रही थी इन्ही बातों को याद करके मुझे रोना आ गया विल्कुल वही स्थित हुई जैसे किसी व्यक्ति का उसके किसी प्रिय से सम्बन्ध विच्छेद हो गया हो और वो कहीं और किसी पराये कि तरह मिले तो दुःख होता है बिल्कुल उसी तरह वैसा ही दुःख मुझे हुआ |</div><div style="text-align: left;"> मै समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूँ, वहां से जाऊं य वहीँ रुक जाऊं , उसकी हवाओं के साथ मेल मिलाप करती पत्तियां, एक दुसरे से हास परिहास करती कोमल शाखाग्र को देख कर वहाँ से हिलने का मन नहीं कर रहा था |</div><div style="text-align: left;"> क्योंकि एक समय था जब मै इसी प्राकृत नृत्य का आदी हो चुका था जो आज मै इस हरे भरे जंगल में देख रहा हूँ | कदाचित, अब ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि, अब वो, मेरी वो लता नहीं है जो मेरे दरवाजे पर लिपट कर स्नेह वर्षा किया करती थी , बल्कि वो तो अब वो वल्लरी हो चुकी है जो अब मुझे जलाने के शिवाय कुछ नहीं कर रही है | </div><div style="text-align: left;"> </div><div style="text-align: left;"> </div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"></div><div style="text-align: left;"></div></div>साहित्यधाराhttp://www.blogger.com/profile/02274445281796479368noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-4945847946495652764.post-76956243530507503752011-04-15T00:53:00.000-07:002011-04-15T00:59:08.283-07:00माँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="post-header"></div>शुरू हुआ है जहां से जीवन,<br />
वो तन है कितना <span style="font-size: x-small;">पावन </span> |<br />
पा करके उस माँ का आँचल,<br />
हरा भरा है ये उपवन ||<br />
<br />
उस गोदी की लोरी क्या, <br />
जो सावन सा सुख देती है |<br />
हर तन्द्रा को भूल के प्राणी,<br />
उस पन में भर देती है ||<br />
जिस छाया में पल कर हम,<br />
आज यहाँ तक पहुचें हैं |<br />
उस छाया की महिमा क्या ......,<br />
जो वेद पुराण भी कहतें हैं ||<br />
ममता की बौछार है जो,<br />
सब पर एक सी पड़ती है|<br />
चाहे कितनी क्रूर बने वो,<br />
पर तो माँ , माँ दिखती है ||<br />
खून से जिसने सींच मुझको,<br />
और तन में स्थान दिया |<br />
उसी वृक्ष का फल हूँ इक मै,<br />
जो जीवन मुझको दान दिया ||<br />
मै अंधियारे में सोता था,<br />
बन प्रकाश वो आई जो |<br />
मेरा पहला शब्द वही था,<br />
वो दुनिया में लाइ जो ||<br />
<i><b>दीपंकर कुमार पाण्डेय </b></i> <br />
-: सर्वाधिकार सुरक्षित :- </div>साहित्यधाराhttp://www.blogger.com/profile/02274445281796479368noreply@blogger.com10